लक्ष्य

बढ़े चले हैं मार्ग पर, गंतव्य का पता नहीं।मनुष्य बुद्धिमान हो, कोई जंगली लता नहीं। पथ प्रदर्शिका चुनो, लक्ष्य का हो बोध ज्ञान,एक बार जो बढ़ दिए, स्वयं को ही…

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कर्म-भूमि

जीवन-धनुष की प्रत्यंचा पर, जैसे बाण चढ़ाया,हुई विकल टंकार और, संकुचित मन घबराया।कब से बैठा था ये मन सब अपना ही मन मारे,केवल मन से नहीं चलता सब, इसे समझ…

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