कर्म-भूमि

जीवन-धनुष की प्रत्यंचा पर, जैसे बाण चढ़ाया,हुई विकल टंकार और, संकुचित मन घबराया।कब से बैठा था ये मन सब अपना ही मन मारे,केवल मन से नहीं चलता सब, इसे समझ…

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हल

न रंजिश रहेगी, न झिझक, न उम्मीद की इन्तेहाँमैं दिल छोड़ के आऊंगा, तू भी दिल छोड़ के आ - ग़ाफ़िल

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अदालत

जेहन में लगी है अदालत, खुद पर ही फ़रोशी के मुकदमे लगे हैं, तू हो जा खुशहाल, और गवाही दे दे। ग़ाफ़िल

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