जो प्रेम तुझे न कर पाया……

जो प्रेम तुझे न कर पाया, तू सोच भला वो क्या पाया।
तू तो मूरत में भी प्राण भर दे, मूरत भी न वो बन पाया।


समझा जिसने भी इस विश्व में, नारी को एक खिलौना,
पुरुषत्व उस नीच का उसी को, उसी के मन में खटका,
लौट सकता था वो वापस, अगर था वो प्रेम से भटका।
भोग किया, विलास जिया, कब तक रहेगी ये काया,
इतना वो न समझ पाया, की क्या शरीर और क्या छाया।


काश समझ जाएं वो और बस कर ले तेरा आलिंगन,
चली गयी तू दूर अगर, तो कैसा जीवन कैसी माया।

जो प्रेम तुझे न कर पाया, तू सोच भला वो क्या पाया।

ग़ाफ़िल

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