बढ़े चले हैं मार्ग पर, गंतव्य का पता नहीं।
मनुष्य बुद्धिमान हो, कोई जंगली लता नहीं।पथ प्रदर्शिका चुनो, लक्ष्य का हो बोध ज्ञान,
एक बार जो बढ़ दिए, स्वयं को ही समस्त मान।लक्ष्य प्राप्ति का ये श्रेय, आपको ही जाएगा,
अनुयाइयों के मार्ग में, ये प्रकाश लाएगा।चले थे बस स्वयं के हित, परोपकार हो गया,
ग़ाफ़िल
लक्ष्य तो मिला ही और, यश-प्रसार हो गया।
तथैव पूर्व ज्ञान हो, लक्ष्य का और मार्ग का,
ध्यान रहा प्रवाह का और समुद्र पार हो गया।