जीवन-धनुष की प्रत्यंचा पर, जैसे बाण चढ़ाया,
ग़ाफ़िल
हुई विकल टंकार और, संकुचित मन घबराया।
कब से बैठा था ये मन सब अपना ही मन मारे,
केवल मन से नहीं चलता सब, इसे समझ में आया।
नहीं उठाता जो धनुष मैं, इतना ही जीवन जीता,
संकट से आगे है विजय, ये सार अब मैनें पाया।
पार्थ भी जब थे व्यथित रण में, केशव ने गाई गीता,
गाण्डीव उठाया इंद्रपुत्र ने, बदली युद्ध की काया।
उठो वीर तुम भी तो अब, और रण-क्षेत्र में उतरो,
धनुष उठाओ, तीर चलाओ, छोड़ दो सब मोह माया।
सुन्दर
धन्यवाद
अत्यंत सुंदर
धन्यवाद
Hey people!!!!!
Good mood and good luck to everyone!!!!!
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