कर्म-भूमि

जीवन-धनुष की प्रत्यंचा पर, जैसे बाण चढ़ाया,
हुई विकल टंकार और, संकुचित मन घबराया।
कब से बैठा था ये मन सब अपना ही मन मारे,
केवल मन से नहीं चलता सब, इसे समझ में आया।
नहीं उठाता जो धनुष मैं, इतना ही जीवन जीता,
संकट से आगे है विजय, ये सार अब मैनें पाया।
पार्थ भी जब थे व्यथित रण में, केशव ने गाई गीता,
गाण्डीव उठाया इंद्रपुत्र ने, बदली युद्ध की काया।
उठो वीर तुम भी तो अब, और रण-क्षेत्र में उतरो,
धनुष उठाओ, तीर चलाओ, छोड़ दो सब मोह माया।

ग़ाफ़िल
Karm Bhoomi
Karma is Supreme.

This Post Has 6 Comments

  1. Udai

    सुन्दर

  2. Mohit

    अत्यंत सुंदर

  3. X22buics

    Hey people!!!!!
    Good mood and good luck to everyone!!!!!

  4. X22buics

    Hey people!!!!!
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